कुछ साल पहले मित्र के साथ दुबई जाना हुआ था। एक इस्लामिक देश होने के बावजूद वहां के खुलेपन ने हमारा मन मोह लिया था। बुर्ज खलीफा, दुबई मॉल देखने के बाद हमें लगा कि सालभर यहां सैलानियों का तांता लगा रहता होगा, लेकिन हमें बताया गया कि रमज़ान के एक महीने यहां ज्यादा पर्यटक नहीं आते क्योंकि तब सार्वजनिक स्थानों पर खाने-पीने की मनाही होती है।
आप किसी भी धर्म या मजहब को मानते हों, लेकिन दुबई में आपको इस्लामिक कानून मानना ही पड़ते हैं। तब यह महसूस हुआ कि अपनी धार्मिक परंपराओं को निभाने की जैसी छूट भारत मे दी गई है, वैसी पूरी दुनिया में कहीं नहीं है।
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कहने को इस देश का नाम हिंदुस्तान है, लेकिन संविधान में शामिल एक शब्द “धर्मनिरपेक्षता” की वजह से इस देश को हिंदुओं का देश नहीं बनाया जा सका। 1947 में देश का बंटवारा सिर्फ धर्म या मजहब की बुनियाद पर हुआ था। पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बन गया और हम हिन्दू राष्ट्र बनने की जगह धर्मनिरपेक्ष देश बनकर रह गए।
इसी थोथी धर्म निरपेक्षता की कीमत देश का बहुसंख्यक समाज आज भी चुका रहा है। एक अखलाक की मौत पर देश को असहिष्णु करार दे दिया जाता है, लेकिन केरल में सैकड़ों संघ कार्यकर्ताओं की हत्या पर किसी के कानों पर जूं भी नहीं रेंगती।
मध्यप्रदेश में गोमांस के शक में एक जोड़े की पिटाई की खबरें पूरे देश में सनसनी बनी हुई है, लेकिन मथुरा में एक हिन्दू लस्सी विक्रेता को इफ्तारी के बाद लस्सी के पैसे मांगने पर मुस्लिमों ने पीट-पीटकर मार डाला, उसकी कहीं कोई खबर ही नहीं है। गुरुग्राम में भी दो पक्षों के सामान्य विवाद को हिन्दू-मुस्लिम रंग दे दिया गया जबकि सीसीटीवी फुटेज से साफ पता चल गया कि झगड़ा व्यक्तिगत था और न ही मुस्लिम की टोपी फेंकी गई थी और न ही शर्ट फाड़ा गया जैसा कि मीडिया में दिखाया जा रहा है।
देश में अपराध की सामान्य वारदातों को ऐसा दिखाने की होड़ मची हुई है मानो मुस्लिम इस देश में सुरक्षित है ही नहीं जबकि हकीकत यह है कि मुस्लिम जितना भारत में सुरक्षित है, उतना पूरी दुनिया में कहीं नहीं है।
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जितनी आज़ादी हिंदुस्तान में मुस्लिमों को मिली हुई है, क्या उतनी आज़ादी किसी हिन्दू को मुस्लिम देश में मिल सकती है? हिंदुस्तान में रहकर आपको गोमांस खाना है, वंदे मातरम नहीं बोलना है, पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ने हैं, आतंकवादियों के जनाज़ों में जाना है, जिहाद फैलाना है और उसके बाद गाली भी हिंदुस्तान को ही देना है जबकि हिन्दू या अन्य धर्म को मानने वालों को मुस्लिम देश में पानी पीने का बुनियादी अधिकार भी नहीं है।
रोज़ा आपका है, लेकिन उसकी सज़ा दूसरे धर्म को मानने वालों को क्यों मिलती है? क्या यह मानवाधिकारों का सरेआम उल्लंघन नहीं है, लेकिन बजाय ऐसी हरक़तों का विरोध करने के कुछ अति बुद्धिजीवियों को खतरा हिंदुत्व से नज़र आता है।
नवरात्रि के दिनों में अपने देश में हम किसी अन्य मज़हब वालों से, विदेशियों से जबरदस्ती व्रत नहीं करवाते तो आपके देश में हम पर यह जुल्म क्यों ? रमज़ान और रोज़ा आपकी निष्ठा है, आपको मुबारक, लेकिन हमारे बच्चे आपके देश में सार्वजनिक स्थानों पर प्यासे क्यों मरे? क्या यह सबसे बड़ी असहिष्णुता नहीं है? भारत का हिन्दू स्वभाव से ही सहनशील है, सर्वसमावेशी है, लेकिन बेवकूफ नहीं है। वह यह दोहरा रवैया अच्छे से देख रहा है, समझ रहा है कि कैसे उसकी उदारता का नाज़ायज़ फायदा उठाया जा रहा है।
यह बात भी सच है कि हिन्दू आजकल उग्र होने लगे हैं, लेकिन इसकी जड़ में दशकों तक चला भेदभाव और तुष्टिकरण दिखाई देता है। मथुरा मामले ओर चुप्पी और मध्यप्रदेश के मामले पर हाहाकार के दोहरे चरित्र को देश की जनता अच्छे से समझ रही है। ऐसे में अगर हिंदुत्व की मूल भावना पर बार-बार प्रहार किया जाएगा तो हिन्दू भी अपना सब्र खो सकता है। अल्पसंख्यकों को चाहिए कि वो बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक आस्था से खिलवाड़ बिल्कुल न करे क्योंकि सामाजिक सौहार्द बनाने की जिम्मेदारी एकतरफा नहीं होती है।
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भारत में असहिष्णुता की बात करने वालों को एक बार रमज़ान के महीने में किसी मुस्लिम देश की यात्रा कर लेनी चाहिए। वहां जाकर उन्हें तुरंत समझ आ जाएगा कि भारत कितना सहनशील देश है। या फिर इराक, सीरिया, यमन की यात्रा किसी भी महीने करके भी वो ये बातें समझ सकते हैं। ऐसे दोहरे चरित्र वाले व्यक्तियों को अपनी हरकतें सुधार लेना चाहिए। कहते हैं एकतरफा प्यार ज्यादा दिन नहीं चलता है|
