दिल्ली में कुछ साल पहले हुए निर्भया कांड के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था और जनता ने स्वस्फूर्त ऊर्जा से सड़कों पर उतरकर अनेक विरोध प्रदर्शन किये, मोमबत्ती मार्च निकाले और बलात्कारियों को फांसी देने की मांग की। लेकिन ना इनसे हमारे सिस्टम को कुछ फर्क पड़ा नेताओं को। बल्कि बेशर्मी से मुलायम यादव कहते दिखे की बच्चों से गलतियां हो जाती है। अब उनकी ही समाजवादी पार्टी के नेता अब उन्नाव केस में सबसे ज्यादा विरोध कर रहे है।
कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी का एक महिला वकील के साथ वायरल हुआ वीडियो भी पूरे देश ने देखा था कि कैसे उन्हें जज बनाने का लालच देकर शारीरिक शोषण किया जा रहा है। इसके अलावा मदेरणा का भंवरी देवी केस हो या फिर एन डी तिवारी के शौकीन मिजाज कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है। अब ताज़ा उन्नाव केस में जिस तरह भाजपा अपने विधायक सेंगर को बचाने की कोशिश करते दिखाई दे रही है उससे यही संदेश जनता में जा रहा है की बेटियों को बचाने की राजनीतिक दलों की सारी बातें कोरी बकवास है।
रेप की अनेक घटनाओं से अखबार भरे रहते है लेकिन जो बड़े और सामूहिक अपराध महिलाओं के साथ किये गये है वो हमारे समाज की सोच को दर्शाता है। आजादी के बाद बंटवारे के समय हुए दंगो में महिलाओं को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया। उसके बाद जब भी कहीं दंगे होते है उसमें भी महिलाओं को नहीं बख्शा जाता है। अभी 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बाद उनके परिवार की महिलाओं के साथ जितनी ज्यादतियां की गईं वो लिखने में कलम भी कांप उठेगी।
रेप अपने आप मे इतना जघन्य अपराध है की इसकी सजा सिर्फ फांसी ही होना चाहिए। दोषी के नाबालिग होने पर भी उसे कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि अगर कोई बच्चा वयस्कों वाले अपराध कर सकता है तो वयस्को वाली सजा भी उसे मिलना ही चाहिए। खेर, देश में महिला अपराधों के बढ़ते मामलों के बीच जो बात गौर करने लायक है वो ये है की महिला अपराधों को समाज ने कभी धर्म-जाति-मजहब के चश्मे से नहीं देखा। अपराधी चाहे कोई भी हो समाज की धारणा यही राहती है की उसे सख्त सजा मिले। लेकिन रेप जैसे अपराध में भी दोषी का धर्म-मजहब देखने का घ्रणित कार्य भी कल से टीवी और सोशल मीडिया पर देखा जा रहा है।
आसिफा नाम की बच्ची से हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले को जिस तरह धर्म के नजरिये से देखा जा रहा है वो देश के अखंडता के लिये घातक है। मीडिया का एक धड़ा जम्मू में अप्रवासी रोहिंग्या के खिलाफ बार कॉउंसिल के वकीलों द्वारा बुलाये गए बंद को जानबूझकर रेप के आरोपियों के पक्ष में बंद बताया जा रहा है। ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की जा रही है मानो रेप के आरोपियों के समर्थन में “भारत माता की जय” के नारे लगाये जा रहे है। कितनी शर्मनाक बात है ये। आसिफ़ा के साथ जो हुआ वो बिल्कुल शैतानी कृत्य है लेकिन आरोपियों का धर्म बताकर क्या सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है? आसिफ़ा के साथ दरिंदगी करने वालों के धर्म का इन सबसे आखिर क्या लेनादेना है? जब उन्नाव केस में धर्म कहीं जिक्र नहीं है तो आसिफा प्रकरण में ऐसा क्यों हो रहा है? क्या किसी साजिश के तहत ये किया जा रहा है?
जब आतंकवाद का धर्म/मजहब नहीं होता, आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं माना जाता तो रेप के आरोपियों का धर्म कैसे बीच मे आ गया? बॉलीवुड की तमाम शख्सियतें भी आसिफा के साथ हुई बर्बरता से दुखी है, इंसानियत के नाते ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन ये गुस्सा इतना “सिलेक्टिव” क्यो होता है ये सवाल बिल्कुल वाज़िब है। देश जानना चाहता है की आखिर क्यों किसी “वर्ग विशेष” की महिलाओं से रेप का देशभर में मुद्दा बना दिया जाता है जबकि बाकी घटनाओं पर सब ऐसे सोये रहतें है मानो कुछ हुआ ही ना हो।
वक्त की जरूरत है की हमे अपराधों और अपराधियों को धर्म/मजहब के चश्में से देखने वालो को चिन्हित करके उनका बहिष्कार शुरू करना होगा। इतने बड़े देश में होने वाली हर घटना को इस प्रकार जाति, मजहब के नजरिये से देखने से देश का कोई भला नहीं होगा बल्कि विदेशी ताकतें ऐसे मौके का फायदा उठाएंगी। ऐसे संवेदनशील मसलों को लेकर हमें अब जागरूक होने की सख्त जरूरत है।
-सचिन पौराणिक

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