तेज हवा जलते दीये को बुझा देती है, लेकिन जंगल में आग लगी हो तो हवा उसे नहीं बुझा सकती है| जंगल में हवा से आग और तेजी से भड़कती है। दीया चूंकि छोटा है, कमजोर है इसलिए हवा का जोर उस पर चलता है जबकि जंगल की आग विशाल और शक्तिशाली होती है इसलिए हवा उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है|
कल भारत बंद के कारण देशभर में हिंसा, आगजनी और अराजकता का दौर चला। दलित संगठनों के इस बंद से कई राज्य जल उठे, हजारों करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो गई और 11 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। इस बंद के दौरान हुई हिंसा से देशभर से परेशान करने वाली तस्वीरें आयी। कहीं एम्बुलेंस को रोक दिया गया तो कहीं विदेशी यात्रियों से भरी बस को। कहीं बस और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों के साथ बदसलूकी की गई तो कहीं सरेआम हथियार चलाए गए। हद तो तब हो गई, जब बंद समर्थकों ने एक कोचिंग सेंटर में घुसकर छात्राओं से अभद्रता की। मतलब आंदोलन की आड़ में सारे गैर-कानूनी कार्य किए गए और कानून का मजाक बनाकर रख दिया गया।
बाबा साहब के अनुयायी होने का दम भरने वाले उत्पातियों को बताना चाहिए कि संविधान में कहां लिखा है इस तरह हिंसा का तांडव करने को? कहां लिखा है कि मरीजो को अस्पताल मत पहुंचने दो? कहां लिखा है कि आंदोलन की आड़ में गोलियां चलाओ, आग लगाओ और वाहनों में तोड़फोड़ करो? आपका गुस्सा सरकार से है या देश की जनता से है ? महिलाओं और छात्राओं के साथ की गई अभद्रता को लेकर क्या दलील है आपके पास?
पहले आरक्षण को लेकर, फिर पद्मावती विवाद को लेकर और अब एससी-एसटी एक्ट को लेकर जिस तरह बार-बार बंद का आह्वान किया जा रहा है, उससे यही लगता है कि इस ‘बंद ब्रिगेड’ का जोर सिर्फ आम आदमी, दैनिक कामगारों, महिलाओं और व्यापारियों पर ही चलता है। इतना ही दम है यदि आप में तो सरकारी कार्यालयों को बंद करवाकर दिखाइए जरा। संसद को बंद करवाकर दिखाइए। आप वहां नहीं जाएंगे क्योंकि सुरक्षा एजेंसियां वहां आपकी अच्छे से खातिरदारी कर देंगी। किसी गरीब, मजदूर या मेहनत से काम करके अपना पेट पालने वालों की दुकान जलाकर क्या दिखाना चाहते हैं आप? किसी ने जाने कितने वक्त में रुपए इकट्ठे करके, लोन लेकर गाड़ी खरीदी होगी, उसको जलाने से पहले क्या आपने एक पल भी सोचा? हो सकता है वह गाड़ी आपके ही किसी गरीब, दलित भाई की हो।
प्रदर्शन के नाम पर किसी हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि इस तरह के उत्पातियों पर सख्ती दिखाए, लेकिन वोट बैंक खिसकने के डर से पुलिस को भी सख्ती नहीं बरतने दी गई। ये बात-बात पर बंद कराने वालों का जोर सिर्फ एक दीये की तरह कमजोर लोगों पर ही चल सकता है। जंगल की आग जैसे शक्तिशाली लोगों को किसी भी आंदोलन या प्रदर्शन से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि उन्हें फायदा ही पहुंचता है। अब बंद कराने वालों को सोचना होगा कि कमजोर पर जुल्म करके वे किस मर्दानगी का परिचय दे रहे हैं?
-सचिन पौराणिक

1 Comment
श्रीमान जी मैं आपका नियमित पाठक हुँ और हर रोज आपके लेख पढ़ता हुँ
इस लेख से पहले दतने भी लेख आपने लिखे उनसे सहमत रहा हुँ कभी किसी लेख पर विरोधात्मक प्रतिक्रिया नही दी! आज पहली बार आपकी इस पोस्ट को लेकर में आपसे पुर्णयता असहमत हुँ!
आशा है मेरी बात को समझकर आप विचार करेगें और मुझे जवाब देगें
देशभर के दलित संगठन कह रहे है कि हमने 2अप्रैल के बंद की कॉल नहीं दी थी।हमने भी किसी भी दलित संगठनों के मुख्याओं की तरफ से कोई आव्हान नहीं सुना था।हमने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर स्टे लगवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने हेतु इस मुद्दे पर समर्थन किया था।हम अंत तक कहते रहे कि जो भी विरोध हो वो शांतिपूर्वक व अहिंसक हो लेकिन सुबह शुरुआत ही हिंसा से हुई।
सवाल यही है कि यह बंद बुलाया किसने था?जितनी भी राजनैतिक पार्टियां है उन सबने अपने कार्यकर्ताओं को बंद का समर्थन करने की एडवाइजरी जारी की।यहां तक कि कई जगह तो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता आंदोलन की अगुवाई करते नजर आए!अब कुछ कुछ साफ होने लगा है कि यह बंद दलितों का था ही नहीं!दलितों को मौहरा बनाकर एक बहुत बड़ा खेल खेला गया जिसमें हर राजनैतिक पार्टी जाने/अनजाने में फंस गई।
एक बात साफ है कि उत्तर भारत मे बीजेपी के लिए 2019में डगर बड़ी कठिन है।वादे सारे जुमले बन गए,विकास अज्ञातवास में चला गया,बेरोजगारों की फौज तैयार होकर जवाब मांग रही है तो कुछ हटकर करना पड़ेगा!धर्म इस देश मे ऐसा सच है जिसके नशे में हर कोई झूमकर पागलपन की पराकाष्ठा लांघ जाता है।एकाएक आरक्षण व संविधान को गालियाँ देने की लहर कोई यूँ ही नहीं चली है!
आप सोशल मीडिया में वायरल हो रहे संदेशों को ध्यान से ,स्वविवेक से समझिये।2अप्रैल को दलितों का भारत बंद का आव्हान करते संदेशों,फोटो में कोई आयोजक नहीं मिलेगा बस समस्त दलित समाज लिखा मिलेगा।कल शाम को जो नये संदेश उपलब्ध हो रहे है उसमें 10अप्रैल को ओबीसी/जनरल द्वारा भारत बंद का आव्हान किया जा रहा है लेकिन कोई संगठन या पार्टी उसकी आयोजक नहीं है सिर्फ समस्त ओबीसी/जनरल समाज लिखा हुआ है तो उसी अंदाज में 10अप्रैल के भारत बंद के विरोध के लिए वायरल हो रहे संदेशों में sc/st/obc/muslim लिखा आ रहा है लेकिन इन समाजों के किसी संगठन का नाम आयोजक के रूप में कहीं नजर नहीं आ रहा है।एक बात कॉमन नजर आ रही है कि 10अप्रैल के भारत बंद के समर्थन व विरोध,दोनों तरह के संदेशों में ओबीसी वर्ग लिखा आ रहा है।
जाहिर है कि जब कोई संगठन,पार्टी,समूह आयोजक ही नहीं है तो किसी से कोई परमिशन की जरूरत ही नहीं है!सड़कों पर उतरो और बेख़ौफ़ तोड़फोड़,आगजनी,हिंसा करते जाओ!जो 2अप्रैल को नीला गमच्छा बांधकर हिंसा फैला रहे थे उसमे से ज्यादातर लोग 10अप्रैल को केसरिया गमच्छा बांधकर हिंसा फैलाते नजर आएंगे।आज देशभर में आगजनी व हिंसा फैलाने वाले प्रोफेशनल लोगों की टीमें तैयार हो चुकी है।चंद पैसों के लिए आप जिस तरह का हिंसक विरोध-प्रदर्शन करवाना चाहते हो ये लोग करने को तैयार है।जातीय विद्वेष व धर्म के नाम पर ये छोटे-छोटे प्रोफेशनल दंगाई समूह बड़े स्तर पर हिंसा को अंजाम दे देते है क्योंकि भारतीय जनता धर्म की जकड़न में इतनी फंसी हुई है कि तुरंत इनके जाल में आकर सुद्बुद ख़ो देती है।
कल दलितों के नाम पर जो भारत बंद हुआ उसका एक उद्देश्य तो समझ मे आया कि sc/st एक्ट में संशोधन का मुद्दा था लेकिन इतना बड़ा व हिंसक आंदोलन सिर्फ इस एक मुद्दे को लेकर नहीं हो सकता!जाहिर सी बात है कि व्हाटसअप यूनिवर्सिटी के माध्यम से बहुत से मुद्दों का घालमेल करके परोसा गया था।उसी प्रकार 10अप्रैल के भारत बंद का उद्देश्य क्या है उसका कोई ठिकाना नहीं है लेकिन भारत बंद करना है तो करना है!व्हाटसअप के माध्यम से भगवा झंडे के साथ मुझे भी संदेश प्राप्त हो रहे है कि आरक्षण खत्म करवाना है और भेजने वाले सबके सब ओबीसी समाज के लोग है।मेरे यह समझ मे नहीं आ रहा है कि आरक्षण से ओबीसी वालों को क्या नुकसान हो रहा है?आपको तो आबादी के हिसाब से 52%आरक्षण के लिए लड़ना चाहिए।दशकों के बाप-दादाओं के संघर्ष से मिल रही रोटी को तुम खुद ही ठोकर क्यों मारने जा रहे हो!जाहिर है ये लोग हिन्दू धर्म की भांग पिये व सुदबुद्ध खोए युवा है जो धर्म के चक्कर मे फंसकर अपना हित-अहित ही नहीं समझ पा रहे है!
रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा,चिकित्सा आदि मुद्दे राजनैतिक पार्टियों ने आईटी सेल के माध्यम से किनारे लगा दिए।इन भारत बंद के आयोजक आई टी सेल वाले है।धर्म व जाति के घालमेल में लपेटकर हम सबको हाँक रहे है।हमारी मुद्दों व समस्याओं पर उठती आवाज को नक्कारखाने में धकेल दिया गया है।अब सब कुछ उन्मादी भीड़ के माध्यम से ये आईटी सेल वाले तय कर रहे है कब,किसको व कहाँ ठेलना है।आईटी सेल आका है और युवा पीढ़ी उन्मादी भीड़ बनकर उनके फर्जी संदेशों पर झूम रही है।हमारे हाथ मे अब कुछ रहा नहीं है!हम खामोश दर्शक बनकर बर्बादी के मंजर में जाते देश को मात्र देख पा रहे है!
देश का मीडिया अपनी विश्वसनीयता पूर्ण रूप से ख़ो चुका है और जिस सोशल मीडिया को हम अपना मीडिया मान रहे है वो आईटी सेल वालों के कब्जे में जाता दिख रहा है।हम भी कमेंट,लाइक वाली टीआरपी में फंसकर सबसे पहले सूचना देने के चक्कर मे फंस गए है!फटाफट के दौर में हमारे अंदर भी धैर्य नहीं रह गया है!हम भी इन आईटी सेल के जाल में फंसकर अफवाहों को फैलाने का माध्यम बनते जा रहे है!यही कारण है कुछ लोग आंदोलन करते है तो कुछ लोग आंदोलन के खिलाफ मैदान में उतर जाते है।सरकार तटस्थ बनकर देखती है व बीच बीच मे पुलिस को भी तीसरे हिंसक ग्रुप के रूप में धकेल दे रही है!अगर हम सावचेत होकर 10अप्रैल के भारत बंद की हवा निकालने में असफल हो गए तो देश अघोषित गृहयुद्ध जैसे हालातों में चला जायेगा!बेशक दंगो व फसाद से कुछ राजनैतिक समीकरण सेट हो जाएंगे और हो सकता हो वर्तमान सत्ता 2019में दुबारा आ जाये लेकिन इस देश के सीने में ऐसा जख्म हो जाएगा जिसको भरने में सदियों गुजर जाएगी!
सावधान रहिये,सतर्क रहिये।धार्मिक उन्माद बनने के बजाय अच्छे नागरिक बनने की कोशिश करिये।यह देश हमारा अपना है और इसको सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है।