योद्धा शब्द अपने आप में ही एक स्वभिमानोन्मुखी संघर्षरत पौरूष का परिचायक है| योद्धा शब्द का विस्तार सिर्फ रणभूमि तक नहीं वरन जिंदगी के हर लम्हे तक है, जिसे इनसान जीता है| हर व्यक्ति को असल ज़िंदगी में योद्धा होना चाहिए और कई लोग होते भी हैं| उन्हीं में से एक हैं शनिवार को भारतीय सैन्य अकादमी में लेफ्टिनेंट के रूप में शपथ लेने वाले 27 वर्षीय राजशेखर| इन्होंने मौत के साथ-साथ उन लोगों की निराशाजनक टिप्पणियों को मात दे दी, जिन्होंने उन्हें अपने सपने त्यागने के लिए कहा था|
दरअसल, राजशेखर का पूरा जीवन ही संघर्षों में बीता | 2005 में उन्होंने अपने पिता को खो दिया, जिसके बाद उनकी मां ने राजशेखर और उनके भाई का पोषण करने के लिए कपड़े सिलने का काम किया। फिर राजशेखर सेना में भर्ती हुए| उनकी पहली तैनाती 12 असम राइफल में दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में हुई |
इसके बाद सैन्य अकादमी की एक रुटीन ड्रिल में चोटिल होने के बाद उनके कई अंग ख़राब हो गए| इस अभ्यास में कैडेट को अपनी पीठ पर भारी-भरकम सामान लेकर 10 किमी दौड़ना होता है, डीहाईड्रेशन के कारण वे पहले कदम पर ही गिर गए| गिरने के बाद भारी सामान के दबाव से उनके शरीर को काफी नुकसान हुआ। उनकी किडनी और लिवर 70 प्रतिशत तक खराब हो चुकी थी| डॉक्टरों ने कह दिया था कि वे अब ज़िन्दा नहीं बचेंगे| अकादमी में उनके मरने की अफवाह भी फैलने लगी| उनकी मां और भाई ने उन्हें सेना में बड़ा अधिकारी बनने के इस सपने को छोड़ने की सलाह दी|
राजशेखर ने हार नहीं मानी| अस्पताल से छुट्टी होने के बाद बीमार हालात में भी उन्होंने रोजाना चार घंटे जिम में मेहनत की, जिससे वे आज न सिर्फ ज़िंदा है अपितु वे अपने सपने को पूरा करने में सफल हो पाए हैं| पासिंग आउट परेड में राजशेखर को इस साहस के लिए बेस्ट मोटिवेटर अवॉर्ड भी मिला। शनिवार को राजशेखर ने सैन्य अकादमी के लेफ्टिनेंट के रूप में शपथ ली|
इस प्रकार राजशेखर के जीवन में उन्हें एक योद्धा के रूप में आसानी से देखा जा सकता है| उन्होंने हार नहीं मानी, वे जिंदगी से लड़े और अपने सपनों को पूरा किया| आज हर बड़ा सपना देखने के लिए राजशेखर प्रेरणा स्त्रोत हैं|
