देश की जनता कोरोना से मौत के मुहं तक पहुँच गई है और सिलसिला लगातार जारी है. मरीजों की संख्या में इजाफ़ा कुल आंकड़े को 5 लाख के पार ले गया है और गिनती अभी थमी नही है . सरकार (Election 2020 List In India) भाषण दे रही है और डाक्टर पुलिस और भगवान् के भरोसे देश की जनता को मरने के लिए छोड़ दिया गया है. आत्मनिर्भर भारत की आत्मनिर्भर जनता .
क्या बात है . वैसे पत्रकारिता की भाषा में कहूँ तो ‘’गौरतलब है कि आत्मनिर्भर का सरकारी मतलब है तेरी तू जाने में री मैं ‘’
इसी बिच चीन से कब युद्ध छिड़ जाये कोई नही जानता. लेकिन इस बीच देश के गृह मंत्री अमित शाह को सिर्फ एक चिंता खाए जा रही है चुनाव कैसे जीते ….. शायद वे अभी तक बीजेपी अध्यक्ष के चोले से बहार नही आ पा रहे है. अर्थव्यवस्था का हवाला देते हुए लाक डाउन खोल कर हाथ खड़े कर दिए गए है.
सरकार की जिम्मेदारियां न गिनवाते हुए सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत पर गौर करें जरा. मप्र की सत्ता हथियाने के लिए पहले तो लाक डाउन में देरी की गई . मतलब जनता की मौत जैसे संगीन विषय पर भी सियासत करने से देश की सरकार ने परहेज नही किया .
मसला मीडिया की सुस्ती या यूँ कहें की उसी की मदद से निपटा दिया गया . लेकिन अब जब कोरोना के मरीज देश भर में रोजाना लगभग 11 हजार से ज्यादा की तादात में बढ रहे है तब भी सरकार गुजरात में राज्यसभा के लिए कांग्रेसी विधायकों की कारिड फ़रोख्त और बिहार में विधानसभा चुनावों के तानेबाने बुनने में लगी है. रोजगार, भुखमरी और मजदूरों की मौत से उसे कोई वास्ता ही नहीं है.
कोरोना काल में ही 7 जून को देश के गृहमंत्री और बीजेपी के सबसे काबिल सिपाही अमित शाह ने बिहार में चुनावी (Election 2020 List In India) रैली का ऐलान कर दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियां पुख्ता की जबकि अमित शाह से यदि यह पूछा जाये की कोरोना के खिलाफ या रोजगार के लिए या अर्थव्यवस्था के लिए दिसम्बर में सरकार का प्लान है तो वे शायद ही उत्तर दे पाए. वेसे उन्हें यकीं है ऐसा पूछने की किसी की हिम्मत नही होगी.
क्योकि उनके दबाव और प्रभाव से देश में कम ही देशद्रोही बचे है . ज्यादातर भक्त या हिंदु वादी है . सो मनमानी चालू है और चलती रहेगी. लेकिन क्या सरकार बहुमत की होने से सरकार को जिंदगियों के सौदे का भी हक़ मिल जाता है. शायद यही है सबका साथ सबका विकास या आत्मनिर्भर भारत .
कोरोना में भी राजनीती करने का यह पहला मौका नही है जो बीजेपी और सरकार कर रही है. गरीबों को रोटी के पेकेट देने से पहले सरकार ने पेकेट पर मोदी की तस्वीर जरुर छापी . अब कितने लोगों को खाना मिला यह कोई नही जानता लेकिन तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल की गई क्योकि तस्वीर में न तो रोटी कुछ बोलती है न लेने वाला. एक मरीज को एक केला देते हुए 20 लोग सेल्फी खिचवा रहे है. यही तो मानवता है, यही मानव धर्म .
बहरहाल बात मोदी और अमित शाह की जिन्होंने बिहार में रैली का फैसला लिया, देश को कोरोना के बीच छोड़ दिया और चीन के सामने मीडिया के कंधो का सहारा लेते हुए जवानो की आड़ में राजनीती जारी रखी . निंदा न करते हुए देश इसकी तारीफ कर रहा है कि क्या वक्त चुना है बीजेपी ने सियासत में अपनी साख और भी गहरी करने का .
सचमुच एक और राज्य को भगुआ करने का इससे अच्छा मौका शायद ही कभी मिले बीजेपी को . मप्र पर परचम लहराने के लिए लोगो की जिन्दगी से खिलवाड़ करने वाली पार्टी के लिए बिहार और उसकी जनता भी महज एक राज्य ही है. इस सब के बावजूद भी इन बड़ी गलतियों पर बड़ी सफाई से पर्दा डाल दिया जायेगा और प्रभावी भाषण में सब दब कर रह जायेगा क्योकि प्रचार तंत्र …………………..
