छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
एकता का मंत्र हम उच्चारते रहे,
कायरों ने घर में गोली दाग कर गये !
पत्नी को स्मरण रखना चाहिए
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
‘भारती’ के भाल की, सदा जो शान थी,
बुजदिलो ने पोंछ पल में बेवा कर गये !
आन-बान-शान की दिव्य मनोहर मूरत को,
गद्दारों ने पल में उसे तोड़कर चले गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
बाहर भी अँधेरा था और भीतर भी
पूत तो सपूत बहु जाये इस भारती ने,
किन्तु कुछ कपूत यह नीच कर्म कर गये !
माँ के चरणों की पूजा के बदले में,
माँ की प्राणज्योति ही बुझा के चले गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
देश को तरक्की के शिखर पर चढ़ा जिसने,
विश्व में ‘माँ भारती’ की शान को बढ़ाया था !
देश द्रोहियों ने सम्मान में उसे ही आज,
सीना छलनी कर जमीं पर लोटा गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
‘इंदिरा’ की प्राणज्योति बुझी ना बुझेगी कभी,
वो तो लाखों प्राणज्योति बन कर के जल रही !
कायरों ने सोचा था, नामो निशां मिटा देंगे,
किन्तु वो तो ‘भारती’ के नाम ही से जुड़ गयी !!
Hindi Kahani : एक था बनिया और एक था पठान
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
(साभार:जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘गौरव’ द्वारा लिखित कविता ‘इंदिरा की प्राणज्योति’)
-Mradul tripathi
