“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है”
भारत के क्रांतिकाल में हजारों क्रांतिकारियों का ध्येय वाक्य बनने वाली इस ग़ज़ल के रचनाकार, क्रांतिकारी, अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की आज 121वीं जयंती है| रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1997 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था| उनकी माता का नाम मूलमति तथा पिता का नाम मुरलीधर था | रामप्रसाद बिस्मिल बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे | उनमें हिन्दी और उर्दू साहित्य के साथ-साथ देशसेवा के लिए अत्यधिक समर्पण था|
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाई थी| बिस्मिल का प्रमुख योगदान उनके किस पहलू को माना जाए, यह तय करना मुश्किल काम है| उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से हजारों युवाओं को इस संग्राम की ओर आकर्षित किया तो दूसरी ओर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेकर अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए| काकोरी कांड जैसी कई महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधियों में उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लिया| उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संगठन की स्थापना की| उनकी आत्मकथा ‘कानपुर से काकोरी के शहीद’ नामक पुस्तक में प्रकाशित हुई थी| वे महज 30 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए|
ब्रिटिश न्यायालय ने रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई | 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश सरकार ने रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर की जेल में सुबह 8 बजे फांसी दे दी|बिस्मिल के साथ ही अशफ़ाक को फैजाबाद जेल में और रोशनसिंह को इलाहबाद के नैनी जेल में फांसी दी गई|
आज उनकी जयंती पर उन्हें शत-शत नमन|

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