बिहार विधानसभा चुनाव सभी सियासी दलों में जोड़-तोड़ की राजनीति और गठबंधन के चक्कर में शुरू हो गए हैं. जेडीयू-बीजेपी के एनडीए और आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन में मुख्य मुकाबला है. लेकिन इसके अलावा भी कई दल छोटे-मोटे गठबंधन करके अपनी दावेदारी पेश कर रहे है.इसी क्रम में उपेंद्र कुशवाहा-ओवैसी-मायावती अब एक साथ चुनावी मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं.
कुशवाहा-मायावती-ओवैसी की जोड़ी एनडीए और महागठबंधन दोनों का सियासी गणित बिगाड़ सकती है.
इस नए गठजोड़ का बिहार के चुनाव पर जो प्रभाव हो सकता है उसे देखें बिंदुवार
RLSP प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बसपा, समाजवादी जनता दल लोकतांत्रिक सहित 6 पार्टियो साथ मिलकर एक नया गठबंधन तैयार किया है.
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ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट नाम का यह गठबंधन जातीय समीकरणों के बूते बिहार चुनाव मैदान में है.
बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम हैं और 16 फीसदी ही दलित मतदाता हैं.
बिहार में कुशवाहा की कुल आबादी 5-6 फीसदी है जो कुल वोट करीब 37-38 फीसदी है.
इसी समीकरण को देखते हुए मायावती, कुशवाहा और ओवैसी ने आपस में हाथ मिलाया है.
16 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो करीब 47 सीटों पर अहम भूमिका अदा करते हैं.
बिहार के लगभग 70 फीसदी विधानसभा सीट पर जीत-हार तय करने में दलित वोटर की महत्वपूर्ण भूमिका है.
इसी वजह से हर गठबंधन के साथ राज्य का दर्जा चेहरा जरूर जुड़ा हुआ है.
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती मायावती की बहुजन समाज पार्टी करीब ढाई दशक से बिहार के चुनावों में हिस्सा ले रही है
बिहार में मुस्लिम समुदाय आरजेडी का मजबूत वोटबैंक माना जाता है जो ओवैसी की पार्टी की दिलचस्पी का कारण है
ओवैसी का असर सीमांचल की राजनीति में साफ दिख रहा है.
