देश की सीमाओं की सुरक्षा जहां आर्मी के हाथों में है. वही आम अवाम और मुल्क की अंदरूनी हिफाजत का जिम्मा पुलिस महकमे के कंधो पर होता है. एक ओर जहां सारा देश सेना को सलाम करते ओर उसकी प्रशंसा करते नहीं थकता वही दूसरी ओर पुलिस का नाम लेते ही आम जनता की शिकायत का पिटारा खुल जाता है और दशकों से चली आ रही पुलिस की परिभाषा जिसमे पुलिस सुस्ती, कर्तव्यों के न निभाए जाने की बातें, घूसखोरी में लिप्त होना और ऐसी ही अनगिनत बातें पुलिस के नाम के साथ जुड़ी हुई है. हालांकि इन सबकी जिम्मेदारी भी कही न कही पुलिस के अपने किये कृत्यों का ही परिणाम है. मगर क्या पुलिस का सिर्फ एक ही पहलु है कि वो इतनी बुरी है की उसके नाम से डरा जाये और पीठ पीछे उसकी बस निंदा की जाये.
नहीं दूसरा रूप भी है… जो समाज अक्सर नहीं देखता. पुलिस वाले भी इंसान है. उनके भी परिवार है. हर छोटी से छोटी ख़ुशी को जीने कि उनकी भी इच्छा है. मगर ड्यूटी के नाम पर त्योहारों में, छुटियो में, भारी भीड़ के शोर से लेकर कर्फ्यू के सन्नाटे में, भीषण बाढ़ में, तपती दोपहर में, नेताओं के आने में, धार्मिक आयोजनों के पंडालों में, सार्वजनिक स्थानों पर या किसी भी लड़ाई झगडे की जगह पर, दिन रात शोरगुल से भरी सड़क पर यातायात को सुगम बनाने की जद्दोजहद में, यहाँ तक की जब हम सब चैन से अपने घरो में सो रहे होते है तब भी आधी रात में पुलिस कर्मी अपनी तमाम इच्छा को दबा कर परिवार को भगवान भरोसे छोड़ कर बंदोबस्त में तैनात रहते है. हिल स्टशनों पर छुट्टी मनाते लोगों को देख कर कही न कही उनका इंसानी मन भी अपने बच्चों और परिवार की उस लालसा को पूरा करने को तड़पता होगा जिसे वे बीते कई सालों से सिर्फ यह कह कर ताल रहे है की छुट्टी नहीं है.
परिवार की छोटी छोटी इच्छा को पूरा करने से पहले एक पुलिस कर्मी खाकी की सेवा को प्राथमिकता देता है. कई तो परिवार से दूर रह कर भी अपना कर्तव्य निभा रहे है.पुलिस कर्मियों को मिले सरकारी क्वाटर की बदहाली, कम पगार, बच्चों की पढाई और परिवार की सुरक्षा के मुद्दों को लेकर कई बार बातें की जा चुकी है जिनका निदान किया जाना फ़िलहाल बाकि है. मगर इन सबसे झुंझते हुए ये सिपाही हर कदम पर वर्दी पहने देश भक्ति और जन सेवा के अपने वादे को निभाते चले जा रहे है. इसका जीता-जागता उदाहरण कोरोना काल भी है जिसमे हम अनगिनत तस्वीरों और खबरों में इस रिपोर्ट के के हर शब्द को सही ठहराती हुई पुलिस देख चुके है.
चाहे वो पुलिसवालों की जान चली जाने की खबर हो या एक पुलिस वाले के अपने ही घर के बाहर बैठकर खाना खाते समय अपनी ही बेटी को दूर से निहारने वाली मार्मिक तस्वीर. सब की सब कहीं न कही पुलिस के दुसरे स्वरुप को उजला करती है. टेलेंटेड इंडिया न्यूज़ की यह खास रिपोर्ट जहां एक ओर पुलिस विभाग को अपनी मौजूदा परिभाषा से निकलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास है, वही सिक्के के दूसरे पहलु पर जिसमे पुलिस के प्रति समाज और सरकार के नज़रिये में बदलाव की कोशिश भी है.
