आज देश कोरोना के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रहा है और अर्थशास्त्रियों की माने तो यह और भी भीषण होने वाला है ऐसे में पीएम मोदी ने जनता से 65 वीं बार मन की बात की. यह बात कोरोना काल में मई माह में की गई थी. मोदी ने जनता से संवाद का एक अलग ही तरीका अपनाया है. वे कभी भी प्रेस कांफ्रेस नहीं करते, उसका अपना कारण है|
प्रेस वार्ता में सवाल होंगे और जवाब देना उनकी फितरत में नही है. साथ ही प्रेस वार्ता जरा सस्ता काम भी है जिसका शौक उन्हें नहीं है क्योकि उनके जेकेट की कीमत सारा देश जानता है. वे मनमानी सरकार के पीएम है और मन की बात करते है . मन की बात करना ही उनका जनता से संवाद करने का जरिया है या यूँ कहे कि अपनी पीठ थपथपाने का मासिक मौका है.
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अब ये मन की बात देश को कितनी भारी पड़ती है ये तो वो ही जाने जो इसे सुनते है. भारी मतलब हर तरह से भारी . आज देश तंगी से गुजर रहा है, गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी बढ रही है जो सदा से देश के लिए समस्या रही है, लेकिन इन सब से बेखबर या खबर होते हुए भी बेखबर पीएम मोदी अपने मन की बात करते है और इन मुद्दों का उसमे कभी जिक्र नही करते. वे बस उज्ज्वला योजना के सिलेंडर और आधार कार्ड की संख्या गिनवा कर खुद को शाबासी देते रहते है. अब इसने जुड़े सच भी देशद्रोही मीडिया यदा कदा दिखा ही देती है. बहरहाल बात मन की बात की.
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मतलब 8.3 X 65 =539.6 करोड़ रुपए माननीय ने मन की बात करने में ही खर्च कर दिए-
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क्या आप जानते है कि पीएम की एक बार की मन की बात के लिए सरकारी खजाने से 8.3 करोड़ रुपए निकालने पड़ते है. और अब तक पीएम 65बार यह मनमानी कर चुके है . मतलब 8.3 X 65 =539.6 करोड़ रुपए माननीय ने मन की बात करने में ही खर्च कर दिए. ऐसे में देश की आर्थिक तंगी में उनका बड़ा योगदान गिना जायेगा या नही यह तो वक्त ही बताएगा. सवाल यह भी है कि भारत जेसे देश में क्या इतनी महँगी मन की बात की जनि चाहिए और यदि हां तो इसका खर्च कौन उठाये|
सरकार जो खुद जनता पर निर्भर है क्योकि सरकार का कमी का अपना कोई जरिया नहीं होता उसे सब कर के रूप में जनमानस से ही संचय करना होता है. ऐसे में जनता के पैसे की इस तरह की बर्बादी का जवाब मांगने वालों को देशद्रोही करार दिया जायेगा . लेकिन सच तो यह है कि इस तरह की मन की बात किसी भी मुल्क के लिए किसी भी सूरत में सही नहीं है कतई नहीं ………………
