भारत में 16 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के पास आज इंटरनेट की सुविधा है। शहरों के साथ-साथ अब गांवों में भी लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। इंटरनेट ने मानव जीवन पर काफी प्रभाव डाला है। व्हाट्सअप और फेसबुक पर आई जानकारियों को कई लोग सच मानते हैं और उस पर अमल भी करते हैं। इंटरनेट ने हर व्यक्ति को एक मंच दिया है, जिसके द्वारा वह अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या सच में आज लोगों को मिल रहे इस मंच की उपयोगिता सही ढंग से हो पा रही है?
आज जब भारत प्रगति कर रहा है और महिलाओं के सम्मान की बात करता है, इस ज़माने में भी इंटरनेट पर कई तरह के लेख मिलते हैं, जो सीधे-सीधे महिलाओं के चरित्र पर वार करते हैं। ये लेख दावा करते हैं कि किसी भी महिला का चरित्र उनके शरीर की बनावट, उसके कद से पता कर सकते हैं। इन लेखों में बताया गया है कि किस तरह से किसी भी महिला से बिना बात किए, बिना उसे जाने केवल उसके शरीर के कुछ अंग देखकर उसे चरित्रहीन या अशुभ मान लिया जाए। ऐसे एक नहीं बल्कि कई लेख हैं, जो महिलाओं के चरित्र की परख करना सिखाते हैं। इन लेखों में अहम् बात तो यह है कि इन सभी लेखों में महिलाओं का चरित्र ऐसी बातों से परखा जाता है, जो बातें इंसान के हाथों में नहीं होतीं। भला किस इंसान के बस में है, उसकी शरीर की बनावट को बदलना ।
आज हमारा देश महिलाओं के खिलाफ हो रहे शारीरिक शोषण के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हो रहे इस तरह के मानसिक शोषण के खिलाफ कब आवाज़ उठेगी?
हमारे देश में महिलाओं की सुंदरता की परिधि तय कर दी गई है। उस परिधि के अंतर्गत आने वाली महिलाओं को घर के लिए शुभ माना गया है और उस परिधि के बाहर सभी महिलाओं को अशुभ और चरित्रहीन। इन लेखों के अलावा कई लेख ऐसे भी हैं, जो महिलाओं को वशीकरण करने के बारे में बताते हैं| इन लेखों में बताया गया है कि किन-किन उपाय से आप महिलाओं को वश में कर सकते हैं और किस तरह उनसे अपनी इच्छा के अनुसार काम करवा सकते हैं। इस तरह के लेख महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को बढ़ावा देते हैं। इन लेखों से यह नज़र आता है कि अभी भी महिलाओं को अपना सम्मान पाने के लिए और लड़ना होगा।
गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी लेखों को ढूंढ़ने के लिए आपको ज्यादा मशक्कत करने की भी ज़रूरत नहीं है। बस गूगल पर ‘महिलाओं’ टाइप करने मात्र से सजेशन बॉक्स इसी तरह के लेखों से भर जाता है। आज हमारे देश में बच्चा-बच्चा भी इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानता है और इंटरनेट से बहुत कुछ सीखता है। इस तरह के लेख हमारी आने वाली पीढ़ियों को भ्रमित कर सकते हैं। उन्हें वह बात भी सिखा सकते हैं, जो उन्हें नहीं सीखना चाहिए।
आजकल कई सारे ऐसे न्यूज़ पोर्टल्स और वेबसाइट्स हैं, जो अपने व्यूज बढ़ाने के लिए इस तरह के लेखों को अपने होम पेज पर जगह देते हैं। क्या ज्यादा व्यूज की होड़ में हम इस तरह के अंधविश्वासी लेखों से अपने देश की मानसिकता खतरे में डालते रहेंगे?
महिलाओं के खिलाफ हो रहे गुनाहों के लिए कहीं न कहीं इस तरह के लेख भी ज़िम्मेदार हैं और वे लोग भी ज़िम्मेदार हैं, जो इस तरह के लेखों को लिखते और फैलाते हैं। अब इसे अंधविश्वास कहें या निरक्षरता, जो इस तरह के लेखों को देखकर भी इनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं। इन लेखों को शेयर करने वाले शिक्षित लोग भी अपनी निरक्षरता का परिचय दे ही देते हैं। इस तरह अंधविश्वास फैलाने वाले और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले लेखों को बैन करने की तत्काल जरुरत है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस तरह की कुत्सित मानसिकता से सुरक्षित रह सके|
-अदिति मोटे
