पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कल उनकी संसद में मेरे दिल की बात कह दी। पिछले 40 वर्षों में मैं पाकिस्तान के जितने भी राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, विदेश मंत्रियों और अन्य नेताओं से मिला हूं, उन्हें और विदेशी मामलों के विशेषज्ञों से भी कहता रहा हूं कि यदि भारत और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान में काम करें तो उसके दो फायदे तुरंत हो सकते हैं। एक तो मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों से भारत का थलमार्ग से सीधा संबंध हो जाएगा, जिसके कारण भारत और पाकिस्तान, दोनों देश मालामाल हो सकते हैं।
दोनों देशों के लाखों नौजवानों को तुरंत रोजगार मिल सकता है। दोनों राष्ट्रों की गरीबी कुछ ही वर्षों में दूर हो सकती है। दूसरा फायदा यह है कि अफगानिस्तान में चला भारत-पाक सहयोग आखिरकार कश्मीर के हल का रास्ता तैयार करेगा। लेकिन इस बात को पाकिस्तान के नेता अब समझ रहे हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें एक खत में यह सुझाया है।
विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने माना है कि अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए भारत का सहयोग भी जारी है। पिछले दिनों मास्को में तालिबान के साथ हुए संवाद में भारत भी शामिल हुआ था। वहां पाकिस्तान तो था ही। कुरैशी ने प्रधानमंत्री इमरान खान को उद्धृत करते हुए कहा है कि अफगानिस्तान को फौजी कार्रवाई से शांत नहीं किया जा सकता है। अफगान-इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैं अमेरिकी और पाकिस्तानी नीति-निर्माताओं को बताता रहा हूं कि बहादुर और स्वाभिमानी अफगानों ने तीन युद्धों में ग्रेट ब्रिटेन को धूल चटाई है, वे आपके वश में कैसे आएंगे ? अशांत अफगानिस्तान ने ही पाकिस्तान में आतंकवाद को जन्म दिया है।
अफगानिस्तान की शांति पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है। इसी काम में आजकल ट्रंप के दूत के रूप में जलमई खलीलजाद लगे हुए हैं। वे मेरे काफी पुराने मित्र हैं। वे अमरीकी नागरिक हैं, लेकिन अफगान मूल के हैं। वे काबुल में अमरीकी राजदूत के रूप में भी रह चुके हैं। वे भारतीय राजनयिकों को भी खूब जानते हैं। मुझे विश्वास है कि पाकिस्तानी नेताओं पर उनकी बात का कुछ प्रभाव पड़ा है।
शाह महमूद कुरैशी के बयान पर अभी तक हमारी सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन मेरा मानना है कि उसका हमें स्वागत करना चाहिए। हमें इस संभावना से डरना नहीं चाहिए कि पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बहाने कश्मीर को भी बीच में घसीट लाएगा। वह लाएगा तो लाने दीजिए। उस पर भी बात कीजिए। अटलजी और मुशर्रफ ने भी बात की थी या नहीं ? मनमोहनसिंह और मुशर्रफ ने चार-सूत्री हल का फॉर्मूला निकाला था या नहीं ? यदि करतारपुर के बरामदे का हल इतनी आसानी से हो सकता है तो अफगानिस्तान की शांति में भारत-पाक सहयोग क्यों नहीं हो सकता ?
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं)
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