कभी ‘टाइगर स्टेट’ कहलाने वाला मध्यप्रदेश अब बाघों की कब्रगाह बनता जा रहा है| बाघों की लगातार हो रही मौतों के पिछले कई वर्षों के आंकड़े चौंकाने वाले रहे हैं| इन आंकड़ों के अनुसार, मध्यप्रदेश देश में बाघों की मौत के मामले में पहले स्थान पर है| कभी मध्यप्रदेश को जो ‘टाइगर स्टेट’ दर्जा हासिल था, आज वह कर्नाटक को मिल चुका है| मध्यप्रदेश लगातार पिछड़ता जा रहा है|
आखिर क्यों छिन गया मध्यप्रदेश से ‘टाइगर स्टेट’ का तमगा? इस प्रश्न का उत्तर भारत में वन्य जीव संरक्षण पर काम करने वाली संस्था ‘वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर’ यानी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आंकड़ों से पता चलता है| मध्यप्रदेश के जंगलों से गायब हो रहे बाघों पर रिसर्च करने के बाद तैयार इन आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले दस वर्षों में प्रदेश में बहुत तेजी से इनकी संख्या घटी है| जहां वर्ष 2009 में 20 बाघों की मौत हुई वहीं 2017 आने तक बाघों की मौत का आंकड़ा 163 पर पहुंच गया, यानी औसतन देखे तो हर वर्ष प्रदेश में 16 बाघों की मौत हुई है|
गौरतलब है कि इस वर्ष (12 अप्रैल 2018 तक) केवल चार महीने के भीतर ही 12 बाघों की मौत हो चुकी हैं| ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यही है| जाहिर सी बात है इन आंकड़ों की जानकारी सरकार के पास भी है और ऐसे संस्थानों के पास भी है, जिन्हें बाघों को बचाने के लिए देश-विदेश से करोड़ों रुपए की राशि प्राप्त होती है| अभी तक बाघों के संरक्षण के लिए सुव्यवस्थित योजना का निर्माण नहीं किया गया है|
बाघों की मृत्यु वर्ष 2009 से लेकर 2017 तक | |
2009 | 20 |
2010 | 11 |
2011 | 5 |
2012 | 15 |
2013 | 10 |
2014 | 15 |
2015 | 15 |
2016 | 34 |
2017 | 28 |
बाघों की मृत्यु 1 जनवरी 2018 से लेकर 12 अप्रैल 2018 तक | ||
क्रमांक | दिनांक | स्थान |
1 | 3.1.18 | ग्राम, बालाघाट |
2 | 13.1.18 | केवलारी रेंज बालाघाट |
3 | 13.1.18 | कान्हा, किसली |
4 | 18.1.18 | चुरना रेंज, सतपुड़ा |
5 | 23.1.18 | कुंडम, जबलपुर कोर्पोरेशन |
6 | 26.1.18 | कौसरई बीट जयसिंगनगर रेंज, उत्तर शाहोलोल |
7 | 29.1.18 | मुक्की रेंज, कान्हा |
8 | 9.3.18 | अमजहर बीट अंजानिया रेंज, मोहनगांव प्रोजेक्ट वीवीएन |
9 | 28.3.18 | घाना आरएफ 314 गोहरगंज रेंज, ओबैदुल्लागंज |
10 | 31.3.18 | दमोख़र बफर, बंधवगढ़ |
11 | 31.3.18 | लागुर रेंज, दक्षिण बालाघाट |
12 | 06.04.18 | कॉम्पेट 652 पाइपाराररा बीट, किस्ली रेंज, कान्हा |
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों इस प्रदेश से बाघ गायब हो रहे हैं| बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ़ इंडिया’ के डायरेक्टर नितिन देसाई का कहना है कि बाघों की मौत का कारण रिजर्व के आसपास हो रहे शिकार हैं, हालांकि वर्ष 2013 में शिकारियों के खिलाफ चलाए गए अभियान के बाद शिकार में तो कमी आ गई, लेकिन बाघों की मौत के कुछ कारण उजागर हुए हैं| इस बारे में बताते हुए संस्था के नितिन देसाई का कहना है कि लगातार हो रही मौतों की रोकथाम के लिए नई योजनाओं पर कार्य करने की आवश्यकता है|
बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भोपाल के अजय दुबे पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में हो रही बाघों की मौत के कारणों को लेकर न्यायालय में दौड़भाग कर रहे हैं|
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अजय दुबे ने इस संबंध में जांच करने की मांग की है| उनका कहना है कि सरकारी तंत्रों के असफल प्रयोगों के कारण बाघों का संरक्षण इस प्रदेश में खतरे में है| उन्होंने आगे बताया कि बाघों की मौत के पीछे का एक कारण भ्रष्टाचार का बढ़ाना भी है| अधिकारियों और सरकार की मिलीभगत के कारण भी मामले की सख्ती से जांच नहीं की जा रही है|
सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों से यह तो साफ़ है कि मध्यप्रदेश के जंगल ‘वनराज’ के लिए सुरक्षित नहीं हैं| सरकार द्वारा बाघों की गिनती करवाकर तथा जंगल में बाघों के बच्चों के साथ फोटो खिंचवाकर भले ही सरकार अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रदेश में बाघों की मृत्यु दर जन्म दर पर भारी पड़ रही है|
प्रदेश में 5 टाइगर रिजर्व हैं| सीधी जिले में संजय गांधी, मंडला जिले में कान्हा किसली, सिवनी जिले में पेंच, पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क और उमरिया जिले में बांधवगढ़ नेशनल पार्क है| इसमें से बांधवगढ़ में टाइगर का घनत्व ज्यादा है तो कान्हा में सबसे ज्यादा टाइगर हैं| इन टाइगर रिजर्व में बाघ कितने सुरक्षित हैं, इनकी पोल मौत के ये आंकड़े खोल रहे हैं|
-रंजीता पठारे
