केंद्र में इस समय प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार विराजमान है . सरकार की तरह ओर से कई दावे किए गए और कई तरह के जुमले दिए गए जिनमें सबसे ज्यादा विकास किए जाने की बात थी. डायलॉग के रूप में सबका साथ सबका विकास अपनाया गया लेकिन विकास के मुद्दे पर बीजेपी सरकार हर मोर्चे पर पिछड़ती नजर आ रही है . बिते 6 या 7 महीनों में सरकार कहीं ना कहीं हाशिए पर है, यह अलग बात है कि गोदी मीडिया इसे उस तरह से प्रसारित नहीं कर रही है जिस तरह से किया जाना चाहिए . विपक्ष की कमजोरी पिछले कई सालों से सरकार की ताकत बनी हुई है .प्रचार तंत्र पूर्ण रूप से सरकार के अधीन हो चुका है ऐसे में बीजेपी सरकार की गलतियां गिरने की वजह मीडिया सिर्फ प्रशंसा में लगी हुई है. रोटी कपड़ा मकान शिक्षा बेरोजगारी महिला विकास के मुद्दों के साथ विदेश नीति चीन और पाकिस्तान के साथ नेपाल और भूटान जैसे नए दुश्मन के अलावा कोरोनावायरस सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है. इसके बावजूद मोदी सरकार हमेशा मुद्दों से ध्यान भटकाने वाले अपनी मुहिम पर है और यदा-कदा कुछ ऐसा कर देती है जिसे मीडिया को प्रसारित करने का आदेश पहले ही मिल चुका होता है . ध्यान मुख्य मुद्दों से भटक जाता है .
इस समय देश तमाम संकटों के साथ एक अजीब तरह के संकट से जूझ रहा है उसे बौद्धिक क्षमता का संकट कहा जा सकता है .कहीं ना कहीं सरकार के निर्णय , काम करने के तौर-तरीके और सरकार के हर समय जनता और मीडिया को बरगलाने के हथकंडे उसकी कम बौद्धिक क्षमता का परिचय बने हुए हैं .अर्थशास्त्र विदेश नीति जैसे बड़े मुद्दों के साथ-साथ मंथन के लिए कमजोर टीम का होना सरकार की नाकामियों का बड़ा कारण बना हुआ है. सिर्फ और सिर्फ जोर से बोल कर चिल्ला चिल्ला कर भाषण देना और हिंदी के उत्कृष्ट शब्दों का प्रभावी ढंग से अपने भाषण में उपयोग करना या कहीं ना कहीं और बीजेपी की तासीर में है. प्रधानमंत्री प्रभावी ढंग से शासन करना चाहते हैं लेकिन सरकार में रहना और सरकार चलाना दो अलग-अलग बातें हैं. दावोस जैसे बड़े मंच से भारत की आधार कार्ड योजना और उज्वला योजना को गिनाते बौद्धिक क्षमता विरले लोगों में ही पाई जाती है . विश्व में कई मंचों पर इस बार भारत को बुलावा भेजा गया जहां पर प्रभावी ढंग से देश का प्रतिनिधित्व कर रहे पीएम मोदी अपनी बात उस तरह से नहीं रख पाए जिस तरह से एक राष्ट्राध्यक्ष को रखना होती है .आधार कार्ड ,रसोई गैस से दुनिया के कई मुल्क पहले ही निजात पा चुके हैं. जब आपको दुनिया के 23 से ज्यादा देश सुन रहे हो तब आपकी भाषा शैली और आप के भाषण के शब्द कुछ और होने चाहिए .विश्व की बातें हो, भारत की सीमाओं की बातें , आतंकवादकी बातें हो तब शायद इतनेे बड़े मंच का ओचित्य सार्थक हो.
सरकार अपने द्वारा किए गए मूलभूत कामों जिन्हें रोटी कपड़ा और मकान में गिना जाता है तो विश्व पटल पर जाहिर कर देश के प्रशंसा कर रही है या निंदा यह भी बुद्धिमत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली बात है. बौद्धिकक्षमताओं की कितनी कमी है इसके गवाह बीजेपी के नेताओं सांसदों विधायकों के विधायकों के उल जलूल बयान और टोल टैक्स और पुलिस थानों पर दादागिरी के किस्से आम है. बी जे पी की क्षमताओं के पर्याय है ऐसे नेता. बुद्धिजीवियों का कहना है कि इस समय देश बुद्धिमत्ता की कमी के संकट से जूझ रहा है . लोकतंत्र का सबसे प्रमुख स्तंभ मीडिया भी इससे अछूता नहीं है . हालांकि मीडिया की बौद्धिक क्षमता पर प्रश्नचिन्ह नहीं है लेकिन बौद्धिक क्षमता के क्रय विक्रय हो जाने को लेकर कई तरह की बातें हो रही है. मीडिया का कोई भी भाग इस तरह की अनर्गल बात का विरोध नहीं कर रहा है और मीडिया का अपने ही खिलाफ हो रही बातों का विरोध दर्ज ना करा ना कहीं ना कहीं इन आरोपों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सिद्ध भी कर रहा है. बौद्धिक क्षमता की कमी से जूझ रहे लोकतंत्र में आज एक सूरत यह भी है कि अब लोग मीडिया को यह समझा रहे हैं कि सत्य दिखाएं जबकि एक समय था कि लोगों के झूठ को मीडिया उजागर किया करती थी.
साथ ही एक धड़ा अंध भक्तों का भी है जो सरकार के किए किसी भी कार्य पर थाली और ताली बजाने को उतारो है उन्हें कहीं से कहीं तक सरकार में कोई कमी पेशी नजर ही नहीं आती लेकिन ऐसा नामुमकिन है एक व्यक्ति की की है सभी कार्य एकदम सही हो सो फ़ीसदी एफिशिएंसी तो आजकल की हाईटेक मशीनों के नहीं है तो इंसान 100 फ़ीसदी सही कैसे हो सकता है. लेकिन जहां तक हम बात कर रहे हैं बुद्धिमत्ता की कमी की वही फिलहाल बीजेपी का प्रचार तंत्र अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता के साथ काम कर रहा है . मसलन स्मृति ईरानी जो कईमंत्रलायों बंटाधार करने के बाद हारी और फिर भी मंत्री बनी, यहाँ सरकार की बुद्धि पर कौन सा पर्दा पड़ा भगवान् जाने. सरकार को छोड़ स्मृति की बुद्धि को ही ले लीजिये . कभी मनमोहन सिंह को चूड़ियाँ भेजने वाली स्मृति मोदी सरकार की नाकामी पर सोशल मीडिया द्वारा कहे जाने पर भी चुप रही. खुद उनके संसदीय क्षेत्र में जनता ने उनके गुमशुदगी के पोस्टर लगवा दिए . विरोधियों को देशद्रोही नाम दिया जाना कोई साधारण काम नहीं था ,लेकिन कहीं ना कहीं अपनी बुद्धि को सही दिशा की जगह गलत दिशा में लगाने में माहिर हो चुके बीजेपी नेता विपक्षियों के द्वारा की जाने वाली किसी बात को सिरे से खारिज कर उसे दबा देने में सक्षम हो चुके हैं ,शायद बुद्धिमत्ता इसी और बढ़ रही है साथ ही इन नेताओं का पुरजोर समर्थन कर रही है मीडिया.
सरकार खुद की नाकामियों को पिछली सरकार के 70 साल हो नेहरू के नाम पर ढोलती आ रही है . नीति आयोग ने सख्त लहजे में आदेश दिया है कि सरकार अब अपने खुद के क्रियाकलापों पर ध्यान दें ना कि बीती सरकार की नाकामी और पर ढोल पीटने की कोशिश करें. बावजूद इसके प्रचंड बहुमत से केंद्र में बैठी मोदी सरकार इन सब बातों को हवा में उड़ा कर मनमर्जी ,खुदगर्जी के साथ आगे बढ़ रही है और इस बुद्धिमत्ता की कमी से अकी जनता भी जुंझ रही है खासकर युवा. जो सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया पर अनर्गल बातों को देश हितऔर पूर्ण ज्ञान समझ रहे है . .बहरहाल राफेल आ गया है और राहुल गांधी ने सरकार से पूछा है कि राफेल के एक विमान की कीमत 526 करोड़ की बजाए 1670 करोड़ रु. क्यों दी गई? 126 की जगह सिर्फ 36 विमान ही क्यों खरीदे गए?। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचएएल की बजाए विमानों केरखरखाव का 30 हजार करोड़ रुपए का ठेका कर्ज में डूबे उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी को क्यों दिया गया।”
इस सवाल का कोई जवाब है सरकार के पास ? यदि हैं तो अपनी बुद्धि से जवाब दिजीए या फिर सवाल करने वालों को देशद्रोही नाम से मशहूर कर दीजिये. याद् रहे राहुल सवालों कोई बुद्धिजीवी भी नही नकार सकता लेकिनयाद आया देश इस समय बुद्धिमत्ता के संकट ही तो गुजर रहा है और मन बात जारी है ………….
