तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेसी खेमे में जहां सरकार बनाने की खुशी है वहीं मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अभी तक सस्पेंस है। कांग्रेस नेताओं ने मुख्यमंत्री का फैसला राहुल गांधी पर छोड़ा है, लेकिन अब राहुल भी पसोपेश में हैं कि आखिर मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, लेकिन जो चेहरे मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं, उनकी क्या योग्यताएं हैं और आखिर क्यों उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए, आईये आपको बताते हैं हमारी इस खास पेशकश में।
सबसे पहले बात करते हैं छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री की दौड़ की। छत्तीसगढ़ की सियासत में कांग्रेस की सरकार बनना किसी चमत्कार से कम नहीं है। अपनी इतनी बड़ी जीत पर खुद कांग्रेस के नेता भी आश्चर्य कर रहे हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा का यह गढ़ जीतने में कांग्रेस ने जी-तोड़ मेहनत की है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास कई चेहरे ऐसे हैं, जिनके नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं और यही कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी भी है।
भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री की दौड़ में
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेश बघेल मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं। पाटन से चार बार के विधायक भूपेश बघेल ने दरभा घाटी में हुए नक्सली हमले के बाद ऐसी स्थिति में पार्टी की कमान संभाली थी, जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं था। ऐसे में 2013 में कमान संभालने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बघेल का जादू नहीं चला, लेकिन इसके बाद से ही उन्होंने अपनी पार्टी को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भूपेश बघेल इस चुनाव में भी पार्टी के पोस्टर बॉय रहे, लेकिन कांग्रेस ने उनका नाम आगे नहीं किया। भूपेश बघेल की दावेदारी मुख्यमंत्री पद पर इसलिए भी बनती है क्योंकि वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, लेकिन सीडी कांड में उनका नाम आना और फिर उन्हें जेल होना कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी और बघेल के बीच रुकावट बन रहा है।
टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री की दौड़ में
यहां से नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव, अंबिकापुर से आते हैं और सियासत में अपना अच्छा दखल रखते हैं। बताया जा रहा है कि करीब 10 विधायक भी टीएस सिंहदेव के संपर्क में हैं, जो उनके मुख्यमंत्री बनने की पैरवी कर रहे हैं। इसके अलावा अपनी मिलनसार छवि के चलते सिंहदेव को मुख्यमंत्री पद की पहली पसंद बताया जा रहा है, लेकिन भाजपा के कुछ नेताओं और मुख्यमंत्री रमनसिंह से घनिष्ठता के कारण उनके नाम पर संशय भी बरकरार है।
चरणदास महंत छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री की दौड़ में
महंत ने मौजूदा विधानसभा चुनाव सक्ति विधानसभा सीट से लड़ा है। प्रदेश में उनकी अच्छी पहचान मानी जाती है। छत्तीसगढ़ के नया राज्य बनने से पहले महंत मध्यप्रदेश में दिग्विजय सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट में मंत्री भी रह चुके हैं। रमन सरकार साल 2008 में जब सत्ता में चुनकर आई, उस समय महंत छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे।
राजस्थान में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो दो नेता मुख्यमंत्री के दावेदार हैं और दोनों ही नेताओं के समर्थक यहां उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए अड़े हुए हैं। सबसे पहला नाम-
सचिन पायलट राजस्थान से मुख्यमंत्री की दौड़ में
राहुल गांधी के खास और पूर्व कैबिनेट मंत्री सचिन पायलट को जब पार्टी ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने युवाओं के बीच एक अलग पैठ बनाई। पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस को जितना उबारा, भाजपा को उतना ही नुकसान भी पहुंचाया। अब जीत के बाद अध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी मजबूत है, लेकिन कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पायलट पर बाहरी होने का ठप्पा लगा है। इसके अलावा पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं, जिससे राजस्थान के दूसरे वर्ग के लोग नाराज़ भी हो सकते हैं। वहीं युवाओं में पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की पुरजोर मांग है|
अशोक गहलोत राजस्थान से मुख्यमंत्री की दौड़ में
राजस्थान की सियासत के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत का कद राजस्थान की राजनीति में वैसा ही है, जैसा कि मध्यप्रदेश की सियासत में दिग्विजयसिंह का। गेहलोत सभी को साथ लेकर चलने वाले नेता हैं और यही कारण है कि जब राजस्थान में गठबंधन की सरकार बनेगी तो वे उसे पांच साल तक चला सकते हैं। जब राजस्थान में कांग्रेस जीत रही थी, तब नेताओं ने गेहलोत को बधाई देनी शुरू कर दी थी और इसके बाद से ही यह सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि वे तीसरी बार सूबे की कमान संभाल सकते हैं। इसके अलावा गेहलोत को मुख्यमंत्री पद का भी तगड़ा अनुभव है, जो उन्हें इस रेस में आगे बनाए है।
अब बारी आती है मध्यप्रदेश की। मध्यप्रदेश में भी दो चेहरे मुख्यमंत्री के लिए आगे है, लेकिन इनमें से बनेगा कोई एक ही यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया या फिर कमलनाथ।
कमलनाथ मध्यप्रदेश से मुख्यमंत्री की दौड़ में
सबसे पहले एक नज़र डालते हैं कमलनाथ के प्रोफाइल पर। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और छिंदवाड़ा से सांसद कमलनाथ को केंद्रीय मंत्रीमंडल में काम करने का लंबा अनुभव है। इसके अलावा 71 वर्षीय कमलनाथ को राहुल गांधी के साथ ही प्रदेश के कई बड़े नेताओं का भी साथ मिला हुआ है। कमलनाथ के नाम पर ही बसपा प्रमुख मायावती ने भी कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही थी यानी यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो वे सभी को साथ लेकर सूबे में सरकार चला सकते हैं। वहीं कांग्रेस नेता भी चाहते हैं कि कमलनाथ को राजनीति के अंतिम दौर में मध्यप्रदेश की कमान देकर सम्मानजनक विदाई दी जाए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश से मुख्यमंत्री की दौड़ में
गुना से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग युवाओं में काफी ज्यादा है। मध्यप्रदेश में लंबे समय से सिंधिया को सीएम प्रोजेक्ट करने की भी मांग की जा रही थी, जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश में चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया था। अब जब कांग्रेस चुनाव जीत गई है तो सिंधिया को भी मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ रही है। कई कांग्रेस विधायकों ने तो सिंधिया के लिए सीट छोड़ देने की भी बात कही है। वहीं राहुल गांधी टीम में सिंधिया की एक अलग जगह लेकिन हो सकता है कि राहुल उन्हें इस बार यह कहकर रोक दें कि उनके पास सीएम बनने के लिए आगे समय है। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें कांग्रेस में अहम जिम्मेदारी भी दी जा सकती है।
बहरहाल, ये तो थी चर्चाएं जिनका बाजार गरम हैं, अब प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा इसका अंतिम फैसला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करेंगे। देखना होगा कि किसके नाम पर राहुल की मुहर लगेगी और फिर पूरे पांच साल उनके राज में सरकार चलेगी।
-राहुल तिवारी
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